ऐ क्षितिज ! जब लौट जायेंगे सब पाखी अपने आशियाने की ओर और सूरज दबे पाँव धीरे धीरे रात के आगोश में चला जायेगा आधा चाँद जब दूर कहीं होगा चाँदनी के इन्तजार में मेघ हौले हौले सूरज को देंगे विदा तब तुमसे मिलने आऊंगा समा लूँगा तुमको अपने अंदर खुद तुममें समा जाऊँगा ....!! तुम्हारा सागर ... सु-मन