अप्रैल 2014 की बात है , नवरात्रे चल रहे थे और
मेरे छत पर ये गुलाब महक रहे थे | मॉम रोज़ एक फूल देवी माँ को चढ़ाना चाहते थे और
मैं इन फूलों से इनके हिस्से की जिंदगी नहीं छीनना चाहती थी और आज भी इन फूलों को
नहीं तोड़ने देती हूँ , कैसे तोडू ये बस यही कहते हैं मुझसे ...
मेरी बगिया का सुमन मुझसे ये कहता है ..
सुमन कहे पुकार के , सु-मन
मुझे न तोड़
महकाऊँ घर आँगन , मुझसे
मुँह न मोड़
ये डाली मुझे प्यारी , नहीं
देवालय की चाह
बतियाऊँ रोज़ तुमसे , रहने
दे अपनी पनाह
मैं सु-मन , सुमन को ये कहती है ...
तू सुमन मैं भी सु-मन ,
जानू तेरे एहसास
खिलता रहे तू हमेशा . मत हो
यूँ उदास
तेरी चाह मुझे प्यारी ,
नहीं करूंगी तुझे अर्पण
देव होता भाव का भूखा , मन
से होए है समर्पण !!
सु-मन