सुप्त जागृति
जागने से गर सवेरा होता
इंसा का रूख कुछ और होता ;
सुप्त जागृति को मिलती लय
जीवन बन जाता संगीतमय ;
न रोता वो कल का रोना
सीख लेता आज में जीना ;
न सताती भविष्य की चिंता
दुख में पल पल न गिनता ;
यूं तो वो हर रोज ही जगता
अन्दर के चक्षु बन्द ही रखता ;
देखता सिर्फ भूत और भविष्य
वर्तमान का ना होता दृष्य ;
समझ को कर तालों में बन्द
इच्छाओं में हो जाता नज़रबन्द ;
ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
भ्रम में होता खुशियों का डेरा ;
न जाना वो सूर्य का सन्देश
धूप और छाँव का समावेश !!