ये जो हमारा मन है ......बहुत बावरा है...........और इस मन में पनपते विचार उन्मुक्त पंछी........जो बस हर वक्त दूर गगन में उड़ना चाहते हैं .........कभी भोर की पहली किरण में.....कभी शाम की लाली में.......तो कभी रात की तन्हाई में............बस चहलकदमी करते रहते हैं .....कुछ इस तरह..............
विचारों की चहलकदमी................
आँखें बन्द करने पर
ख़्वाब कहाँ आते हैं ;
विचारों की चहलकदमी में
पल बीतते जाते है ;
नहीं रुकते उसके कदम
चलते ही जाते हैं ;
नहीं होता कोई बन्धन
बढ़ते ही जाते हैं ;
कभी चेहरे पर हंसी
कभी रुला जाते हैं ;
लाख चाहने पर भी
पकड़ में न आते हैं ;
सुलझाने की कोशिश में
उलझते ही जाते हैं ;
ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश
जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;
ज्यूं नदी की हर मौज में
किनारे धंसते जाते हैं !!
सुमन ‘मीत’
कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
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शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
शनिवार, 14 अगस्त 2010
नमन शहीदों को...............
15 अगस्त 1947 हमारा प्रथम स्वतंत्रता दिवस...............वो दिवस जिसे सभी आँखें देख पाई न देख सके हमारे शहीद जवान जो अपनी मातृभूमि के लिये हंसते हंसते कुर्बान हो गये । आज हमारे 63वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी’ की यह कविता उन सभी जवानों और उनके परिवार वालों को समर्पित है जिन्होंने आजादी की जंग में अपनों को खोया है...............
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गुँथा जाऊँ,
चाह नहीं , प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के सर पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सर पर
चढ़ूं , भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली !
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक !!
माखनलाल चतुर्वेदी
शनिवार, 7 अगस्त 2010
मेरा आसमां.............
आजकल चाँद बादलों के संग आँख मिचोली करता रहता है और मुझे मेरा आसमां कुछ यूं नजर आता है.........................
मेरा आसमां
आज मेरा आसमां धुंधला सा है
सितारों के बगैर चाँद सूना सा है;
बादलों की परछाई जब उसे घेर लेती
गुमसुम सी चाँदनी जैसे मुँह फेर लेती;
बादलों ने भी रूख पे नकाब है ओढ़ा
छलक पड़ेगा नीर जब सरकेगा वो थोड़ा;
तब छंटेगी धुंध मेरे आसमां की
निखर आयेगी चाँदनी इक मेहरबां सी ..........!!
सु..मन
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