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शनिवार, 30 अगस्त 2014

तुम्हारी चाहना
















मैंने एक चाह भर की
कि आज रात तुम ना निकलो
मैं खुली खिड़की से निहारूं राह
पर तुम ना आओ
अजीब सी शै है तुम्हारी चाहना
एक अनबुझ प्यास |

बाहर बारिश की बूंदों ने
कुछ आस बंधाई है
आज रात तुम
बादलों के पीछे छिप जाना
धुल जाये जब सुबह तलक
कलंक का ठीका
मेरी खिड़की तले
बिखेर देना तुम हल्की चाँदनी |
***
कलंक चौथ एक आस्था ...गणेश चतुर्थी एक उत्सव ..सब मन का फेर है...तुम्हारी चाहना इससे इतर कुछ भी नहीं !!

सु-मन


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