प्रेम
इतना विशाल होता है कि जिसको परिभाषित करना नामुमकिन है बिलकुल वैसे....जैसे इस
असीमित आकाश को सीमा देना | ईश्वर की सबसे सुंदर कृति इन्सान और इंसान में धड़कता
उसका कोमल ह्रदय ..उसमें बहता भावनाओं का दरिया ....और उन भावनाओं से उपजती प्रेम
की अभिव्यक्ति......
प्रेम
(अपरिभाषित)
सोचा
लिखूं... मैं भी
प्रेम
की परिभाषा
परिभाषित
कर दूँ प्रेम
आज
इस प्रेम दिवस पर
पर
...
मेरे
लिए
नहीं
हैं प्रेम
मात्र
एक दिन की सौगात
न
ही
अभिव्यक्ति
एक दिन की
मेरे
लिए
हर
पल है प्रेम
जिसमे
सुनती हूँ
मौन
तुम्हारा
देखती
हूँ अपनी आँखों में
तुम्हारे
कुछ बुने सपने
लफ़्ज़ों
को देती हूँ
आकार
तुम्हारा
सृजित
करती हूँ
अपने
भीतर
एक
नई कोंपल
तुम्हारे
नेह की
और
‘मन’
के दर्पण में
देखती
हूँ
हर
पल खिलता
एक
‘सु-मन’ !!
सु-मन