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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

प्रेम (अपरिभाषित)


प्रेम इतना विशाल होता है कि जिसको परिभाषित करना नामुमकिन है बिलकुल वैसे....जैसे इस असीमित आकाश को सीमा देना | ईश्वर की सबसे सुंदर कृति इन्सान और इंसान में धड़कता उसका कोमल ह्रदय ..उसमें बहता भावनाओं का दरिया ....और उन भावनाओं से उपजती प्रेम की अभिव्यक्ति......

प्रेम (अपरिभाषित)

सोचा लिखूं... मैं भी
प्रेम की परिभाषा
परिभाषित कर दूँ प्रेम
आज इस प्रेम दिवस पर  
पर ...
मेरे लिए
नहीं हैं प्रेम
मात्र एक दिन की सौगात
न ही
अभिव्यक्ति एक दिन की
मेरे लिए
हर पल है प्रेम
जिसमे सुनती हूँ
मौन तुम्हारा
देखती हूँ अपनी आँखों में
तुम्हारे कुछ बुने सपने
लफ़्ज़ों को देती हूँ
आकार तुम्हारा
सृजित करती हूँ
अपने भीतर
एक नई कोंपल
तुम्हारे नेह की
और
‘मन’ के दर्पण में
देखती हूँ
हर पल खिलता
एक ‘सु-मन’ !!




सु-मन 

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

अनदेखी मंजिल
















बढ़ते क़दमों को
रोकने के प्रयास में
गिरती उठती वो
कब तक संभाल पायेगी
हाथों से गिरते
पलों को
आस में बंधे
खाबों को
कैसे सहेज पाएगी
आँखों से गिरती
उम्मीदों को
धूल में उड़ती
यादों को
ये रास्ता अनदेखी मंजिल का
उसे न जाने
कहाँ ले जायेगा  
क़दमों के निशां रह जायेगें
कारवां बढ़ता जायेगा !!


सु-मन

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