धरा जब श्वास छोड़ती .. तभी गगन साँस भरता और अदृश्य कण प्रवाहित होते , इस ओर से उस ओर । गगन के हृदय में संग्रहित वही श्वास बादल बनकर मौन की यात्रा करते- करते, एक दिन बारिश बनकर शांत हो जाते और पुन: धरा की श्वास में मिल जाते हैं |
ये एक अंतर्यात्रा है । निर्वात यात्रा ।
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२०)