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शनिवार, 24 नवंबर 2012

वक़्त



















ऐ राही !
तुम उसे जानते हो
वो तुन्हें जानता भी नहीं
तुम संग उसके चलते हो
वो ठहरता भी नहीं
तुम पथ पर ठोकर खाते हो
वो गिरता भी नहीं
तुम मंजिल भूल जाते हो
वो भटकता भी नहीं
तुम रिश्तों से घबराते हो
वो बंधता भी नहीं
तुम भावों में घिर जाते हो
वो सिमटता भी नहीं
तुम खोकर पाना चाहते हो
वो पीछे हटता भी नहीं
तुम जीत की चाह रखते हो
वो लड़ता भी नहीं
तुम फिर से जीना चाहते हो
वो मरता भी नहीं
तुम उसे जानते हो -२
वो तुम्हे जानता भी नहीं
तुम संग उसके चलते हो
वो ठहरता भी नहीं
वो ठहरता भी नहीं !!


सु-मन  

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शब्द से ख़ामोशी तक ...अनकहा मन का


ख़ामोशी में बहुत कुछ है अब ...सुनने को ....वो भी जो तब नहीं सुन पाई थी .....जब शब्द बात करते थे ....अब चारों पहर बस ख़ामोशी ही गुनगुनाती है हमारे बीच ...और राह तकते शब्द थक कर सो जाते हैं गहरी नींद ......!!

(शब्दों का न होना सालता है कभी कभी ....पर ख़ामोशी मन को बांधे है ...दोनों एक दूसरे के पूरक हैं शायद)



सु-मन 

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