कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
Pages
@सर्वाधिकार सुरक्षित
सर्वाधिकार सुरक्षित @इस ब्लॉग पर प्रकाशित हर रचना के अधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं |
बुधवार, 18 अक्तूबर 2017
बुधवार, 11 अक्तूबर 2017
बुधवार, 20 सितंबर 2017
आभासी दुनिया का साभासी सच
आभासी दुनिया का साभासी सच
जो दीखता है वो होता नहीं ,जो होता है वो दीखता नहीं..
आज बस में थोड़े कम लोग थे और मेरे सामने की सीट पर बैठी एक लड़की के हाथ में Mobile था । वो कुछ type कर रही थी माने chatting कर रही थी । न चाहकर भी मैं उस पर से अपना ध्यान हटा नही पाई । उसके होठों पर उभर आई मुस्कराहट उसकी आँखों में अजीब सी शोखी पैदा कर रही थी । मैं उसे देखती रही की इस आभासी दुनिया से मिली मुस्कराहट आभासी नहीं, साभासी थी (Realistic) थी । मैं उसके चहरे पर उभरते भावों को देखती रही कुछ भी तो आभासी नही था सब यथार्थ था उसकी मुस्कराहट ,उसके हाथ में वो mobile , उस पर टाइप करते उसके हाथ और उसको देखती हुई मैं .. सब यथार्थ, हकीकत हाँ आभासी था तो इंसान जिससे वो बात कर रही थी जो उस वक़्त न होकर भी इन सब में था /थी ।
आज मिली मुस्कराहट कल आंसू भी देगी , गम भी देगी । मिलता है दुख..तय है । सुख और दुख साथ साथ चलते हैं हमेशा । हर सुख आने वाले दुख के लिए नींव तैयार करता है और उसको भोगना पड़ता है क्यूंकि संवेदनाएं कभी आभासी नहीं होती वो यथार्थ से जुड़ी होती हैं । आभासी दुनिया ऐसी ही रहेगी कुछ भी न बदलेगा क्यूंकि नहीं देख पाता कोई तुम्हारे चेहरे पर उभरी मुस्कराहट या उदासी ,उसे तो दिखती है बस keypad पर लिखी एक इबारत जिसे पढ़कर या अनपढ़े वो बना देता है कोई स्माईली और इस तरह आपकी संवेदनाएं सिर्फ आभासी बन कर रह जाती हैं एक दिन किसी के लिए !!
(चार साल पहले ऑफिस जाती बार देखे दृश्य से प्रेरित )
सु-मन
बुधवार, 13 सितंबर 2017
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१३)
शाम खामोश होने को है और रात गुफ्तगू करने को आतुर ... इस छत पर काफी शामें ऐसी ही बीत जाती हैं ...आसमां को तकते हुए .... सामने पहाड़ी पर वो पेड़ आवाज लगाते हैं ..कुछ उड़ते परिदों को ..आओ ! बसेरा मिलेगा तुम्हें ..पर परिंदे उड़ जाते हैं दूर उस ओर ... अपने साथी संग .. सुनसान जंगल में रह जाती है पत्तों की चुप्पी ...।
आसमां तारों से भर चूका है ,सुबह की बदली का एक टुकड़ा बेतरतीब सा फैला छत पर कर रहा इन्तजार चाँद का ...।।
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-१२)
सोमवार, 14 अगस्त 2017
शुक्रवार, 28 जुलाई 2017
तुम और मैं
अनगिनत प्रयास के बाद भी
अब तक
'तुम' दूर हो
अछूती हो
और 'मैं'
हर अनचाहे से होकर गुजरता प्रारब्ध ।
एक दिन किसी उस पल
बिना प्रयास
'तुम' चली आओगी
मेरे पास
और बाँध दोगी
श्वास में एक गाँठ ।
तब तुम्हारे आलिंगन में
सो जाऊँगा 'मैं'
गहरी अनजगी नींद !
*****
उनींदी से भरा हूँ 'मैं' , नींदों से भरी हो 'तुम' ।
चली आओ कि दोनों इस भरेपन को अब खाली कर दें !!
सु-मन
सोमवार, 24 जुलाई 2017
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१२)
दोस्त वह जो जरूरत* पर काम आये ।
सोच में हूँ कि मैं / हम जरूरत का सामान हैं । जरूरत पड़ी तो उपयोग कर लिया नहीं तो याद भी नहीं आती । रख छोड़ते हैं मेरा / हमारा नाम स्टोर रूम की तरह मोबाइल की कोन्टक्ट लिस्ट में कोई जरूरत पड़ने तक !
फिर भी , मैं हूँ / हम हैं उम्र की आखिरी सतह तक एक दूसरे के लिए , गर समझ सको तो समझना !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-११)
गुरुवार, 13 जुलाई 2017
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (११)
सुबह और रात के बीच बाट जोहता एक खाली दिन ... इतना खाली कि बहुत कुछ समा लेने के बावजूद भी खाली .... कितने लम्हें ..कितने अहसास ...फिर भी खाली ... सूरज की तपिश से भी अतृप्त .. बस बीत जाना चाहता है | तलाश रहा कुछ ठहराव .. जहाँ कुछ पल ठहर सके ...अपने खालीपन को भर सके ।
ठहराव जरुरी है नव सृजन के लिए ...
इसलिए ऐ शाम !
रख रही हूँ एक और दिन तेरी दहलीज़ पर !!
रख रही हूँ एक और दिन तेरी दहलीज़ पर !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-१०)
गुरुवार, 29 जून 2017
हे निराकार !
तू ही प्रमाण , तू ही शाख
तू ही निर्वाण , तू ही राख
तू ही बरकत , तू ही जमाल
तू ही रहमत , तू ही मलाल
तू ही रहबर , तू ही प्रकाश
तू ही तरुबर , तू ही आकाश
तू ही जीवन , तू ही आस
तू ही सु-मन , तू ही विश्वास !!
*******
मन में विश्वास है और विश्वास में तुम
मेरे आकारित परिवेश के तुम एकमात्र प्रहरी हो ।
सु-मन
शनिवार, 24 जून 2017
हे ईश्वर !
कर्मों के फल का
उपासनाओं के तेज़ का
दुख के भोगों का
सुख की चाहों का
मन के विश्वास का
ईश्वर की आराधना का
अपनों के साथ का
रिश्तों के जुड़ाव का
निश्छल प्रार्थनाओं का
होता ही होगा कोई मोल ..
*
*
शरीर की नश्वरता का
जन्म मरण के खेल का
विधि के विधान का
विपदा के निदान का
श्वास की गति का
जिंदगी की मोहलत का
नहीं होता है कोई तोल...
हे ईश्वर !
ये जीवन तेरे पूर्वाग्रह में समर्पित हो !!
सु-मन
मंगलवार, 6 जून 2017
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१०)
एक कहानी होती है । जिसमें खूब पात्र होते हैं । एक निश्चित समय में दो पात्रों के बीच वार्तालाप होता है । दो पात्र कोई भी वो दो होतें हैं जो कथानक के हिसाब से तय होते हैं । कथानक कौन लिखता है... उन किसी को नहीं मालूम । मालूम है तो बस इतना कि उस लिखे को मिटाया नहीं जा सकता । प्रतिपल लिखे को आत्मसात कर कहानी को आगे बढ़ाते जाते हैं । इस कहानी में मध्यांतर भी नहीं होता कि कोई सोचे जो पीछे घटित हुआ उसके अनुसार आगे क्या घटित होगा । बस होता जाता है, सब एक सुव्यवस्थित तरीके से । कहानी कभी खत्म नहीं होती । हाँ बस पात्र बदलते रहते हैं ।
वार्तालाप खत्म होने पर भी पात्र इकहरा नहीं होता , जाने क्यूँ ...
दोहरापन हमेशा लचीला होता है शायद इसलिए !!
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-९)
गुरुवार, 6 अप्रैल 2017
सुमन की पाती
अप्रैल 2014 की बात है , नवरात्रे चल रहे थे और
मेरे छत पर ये गुलाब महक रहे थे | मॉम रोज़ एक फूल देवी माँ को चढ़ाना चाहते थे और
मैं इन फूलों से इनके हिस्से की जिंदगी नहीं छीनना चाहती थी और आज भी इन फूलों को
नहीं तोड़ने देती हूँ , कैसे तोडू ये बस यही कहते हैं मुझसे ...
मेरी बगिया का सुमन मुझसे ये कहता है ..
सुमन कहे पुकार के , सु-मन
मुझे न तोड़
महकाऊँ घर आँगन , मुझसे
मुँह न मोड़
ये डाली मुझे प्यारी , नहीं
देवालय की चाह
बतियाऊँ रोज़ तुमसे , रहने
दे अपनी पनाह
मैं सु-मन , सुमन को ये कहती है ...
तू सुमन मैं भी सु-मन ,
जानू तेरे एहसास
खिलता रहे तू हमेशा . मत हो
यूँ उदास
तेरी चाह मुझे प्यारी ,
नहीं करूंगी तुझे अर्पण
देव होता भाव का भूखा , मन
से होए है समर्पण !!
सु-मन
शनिवार, 25 मार्च 2017
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (९)
आजकल बहुत सारे शब्द मेरे ज़ेहन में घूमते रहते हैं इतने कि समेट नहीं पा रही हूँ अनगिनत शब्द अंदर जाकर चुपचाप बैठ गए हैं । एक दोस्त की बात याद आ रही है जब कुछ अरसा पहले यूँ ही शब्द मेरे ज़ेहन में कैद हो गए थे ।उसने कहा था , ' सुमी ! अक्सर ऐसा होता है जब बहुत सारे शब्द हमारे अंदर इकट्ठे हो जाते हैं और हमसे आँख मिचोली खेलते हैं । हमारे लाख बुलाने पर भी बाहर नहीं आते । होने दो इकट्ठे इन्हें अपने अंदर ,एक दिन खुद-ब-खुद बाहर आ जाएंगे और पन्नों पर उतर जाएंगे ।' कुछ वक़्त बाद सच में वो शब्द लौट आये मेरे पास मेरे डायरी के पन्नों पर उतर गए ।
उस दोस्त की बात मुझे अक्सर याद आती है जब भी एक कैद से मुक्त होकर शब्द मुझसे बात करते हैं । उस दोस्त से अब ज्यादा बात नहीं होती जिंदगी की भागदौड़ बहुत बढ़ गई है ना । उसे तो अपनी कही ये बात भी याद नहीं होगी शायद |
मैं इंतजार में हूँ कि अबके भी शब्द मेरी सुन लें और लौट आये मुझ तक कि मेरी डायरी के पन्नों में बसंत खिलना बाकी है अभी !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-८)
सोमवार, 20 मार्च 2017
वो लड़की ~ 4
अक्सर देखती रहती
सूर्य किरणों में उपजे
छोटे सुनहरी कणों को
हाथ बढ़ा पकड़ लेती
दबा कर बंद मुट्ठी में
ले आती अपने कमरे में
खोल कर मुट्ठी
बिखेर देती सुनहरापन
:
रात, पनीली आँखों में
चाँद को भरकर
ठीक इस तरह
रख देती कमरे में
शबनमी चाँदनी
खिड़की और दरवाजे को बंद कर
गुनगुनाती कोई मनचाहा गीत
वो लड़की पगली बेहिसाब है !!
सु-मन
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017
गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017
वो लड़की ~ 3
बहुत उदास सी है
शाम आज
आसमान भी
खाली खाली
घर की ओर बढ़ते
उसके कदमों में
है कुछ भारीपन
यूँ तो अकसर
दबे पाँव ही आती है
ये उदासी
पर आज
न जाने क्यूँ
इसकी आहट में
है चुभन सी
जो उसकी रूह को
कचोटती हुई
भर रही है
उसकी नसों में
एक धीमा ज़हर
और वो
अजाने ही उसको
समेट रही
आँखों के प्याले में
पी रही
घूँट घूँट नमी
वो लड़की बहुत उदास है !!
सु-मन
सदस्यता लें
संदेश (Atom)