बढ़ गया दायरा जब तन्हाई का या रब
तू भी बदल गया एक बेवफा की तरह ;
डाला था हमने खुद को तेरी पनाह में
ठूकरा दिया तूने भी एक इंसान की तरह ;
क्या करें शिकवा क्या शिकायत किसी से
तू तन्हा छोड गया एक मुसाफिर की तरह ;
रूह-ए-सकूं मांगा था तेरी निगेहबानी में
दगा दिया तूने भी एक अजनबी की तरह ;
अब तो है शब-ए-गम , तड़प और टूटे ख़ाब
तू आ जाता है कभी सामने एक याद की तरह !!
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सु..मन
अर्पित 'सुमन'--------नई चेतना