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रविवार, 3 नवंबर 2013

जल रहे हैं दीपक













जल रहे हैं दीपक 

सबके आँगन 
चल रहे हैं 
पटाखे फुलझडियाँ 
सज रहे हैं द्वार 
लक्ष्मी के स्वागत में ...

ये देखते हुए 

जलाया है किसी ने 
पिछले बरस खरीदा 
अधटूटा सा दीपक 
घर के द्वार पर 
तुम्हारे लिए .....

रखी है उसने 

अपने हिस्से की 
एक पूरी कुछ हलवा 
मिला है जो उसको 
आज सुबह 
एक मंदिर के बाहर 
भीख के कटोरे में .....

सोच में हूँ 

क्या आओगी तुम 
उस द्वार 
या जलेगा वो दीपक 
फिर तन्हा 
यूँ ही अगले बरस...... !!



सु..मन 

(हे माँ ! सभी की झोली खुशियों से भर दो ...सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं ...) 

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