पक्का निश्चय कर
साध कर अपना लक्ष्य
चले थे इस बार ये कदममंजिल की ओर
मन में विश्वास लिए
मान ईश्वर को पालनहार
कर दिया था अर्पित खुद को
उस दाता के द्वार
मेहनत का ध्येय लिए
कर दिए दिन रात एक
त्याग दिए थे हर सुख साधन
कर्म के इम्तिहान में
कभी किसी पल
तुम आकर मुझे डराते
तोड़ने लगते थे मेरा विश्वास
अपने दलीलों से
तब मैं -
मन में ऊर्जा सृजित कर
ख़ामोश कर देती थी तुमको
मेहनत और कर्म की प्रधानता से
बाद महीनों -
तुम फिर मेरे सामने हो
उन्हीं दलीलों के साथ
सशक्त, अडिग,ऊर्जावान
और मैं -
मेहनत के उड़ते रंग लिए
विश्वास की टूटी डोर पकड़े
ख़ामोश, मँझधार , ऊर्जाहीन ।
ऐ प्रारब्ध !
मान ईश्वर को पालनहार
कर दिया था अर्पित खुद को
उस दाता के द्वार
मेहनत का ध्येय लिए
कर दिए दिन रात एक
त्याग दिए थे हर सुख साधन
कर्म के इम्तिहान में
कभी किसी पल
तुम आकर मुझे डराते
तोड़ने लगते थे मेरा विश्वास
अपने दलीलों से
तब मैं -
मन में ऊर्जा सृजित कर
ख़ामोश कर देती थी तुमको
मेहनत और कर्म की प्रधानता से
बाद महीनों -
तुम फिर मेरे सामने हो
उन्हीं दलीलों के साथ
सशक्त, अडिग,ऊर्जावान
और मैं -
मेहनत के उड़ते रंग लिए
विश्वास की टूटी डोर पकड़े
ख़ामोश, मँझधार , ऊर्जाहीन ।
ऐ प्रारब्ध !
इम्तिहान में हारी मैं और तुम फिर जीत गए !!
सु-मन