कब
तक लूटती रहेगी
रोज
अस्मत सरे बाज़ार
कब
तक यूँ एक बेटी
रोज
बेआबरू की जायेगी |
कब
तक चुकानी है कीमत
उसको
एक लड़की होने की
कब
तक एक निर्दोष पर
यूँ
अंगुली उठाई जायेगी |
कब
तक शोषित होगी नारी
इस
सभ्य संकीर्ण समाज में
कब
तक उसके अरमानो की
यूँ
रोज चिता जलाई जायेगी |
कब
तक ..आखिर कब तक ???
सु-मन