बुत के समान
जिन्दा लाश बनकर
कब तक ढोते रहोगे
जिंदगी का कफ़न
आओ !
जड़ को चेतन में बदल कर
फूलों के जहाँ में
जीना सीखा दूँ
चलो !
मरीचिका के आईने को
पार कर देखो
दर्पण के पहलू में
अनेक बिम्ब दीखते हैं
संभल कर पोंछ दो
गर्द की परत
निखर आयेगी हर छवि
अंतस की गहराई में
करो और देखो
जिंदगी के दामन में
हज़ारों रंग बिखरे हैं
तुम्हारे लिए ..!!
सु-मन