काश ! होता एक ऐसा भी
कल्पवृक्ष
जिसकी शाख पर
लटकी होती
अनगिनत इच्छाएँ
और
उन इच्छाओं को
तोडने के लिए
सींचना पड़ता उसको
प्यार और संवेदना के जल से
तो हर बेबस माँ
रखती उसे हरा-भरा
ताउम्र
और तोड़ लेती
अपने बच्चे की
हर इच्छा
पूरा कर देती
उसका हर सपना ।
होता यूँ भी
कि जब-जब
गिरता उसका हर आँसू
उसकी जड़ों में
झरते उसकी शाख से
कागज के हरे हरे पत्ते
तो खरीद लाती वो
मासूम आँखों में बसा
एक आशियाना ।।
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संवेदना के सागर तले झर रही
हैं आँखें
कल्पवृक्ष से अब भी झर रहे
हैं पत्ते .....!!
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सु-मन