(बेटी दिवस पर)
माँ सुनो !
जब पहली बार
किया था महसूस
अपने गर्भ में
मेरा वजूद
तो बताओ ना
मेरी धड़कन में
किसे जिया था तुमने
एक बेटा या बेटी ।
जब कभी
अकेले में बैठ
करती थी मुझसे बात
क्या कुछ पनपता था
तुम्हारे भीतर
एक बेटी की चाह
या बेटे का सपना ।
जब पहली बार
गूँजी मेरी किलकारी
लिया था अपने हाथों में
तुम्हारी सोच की हकीकत को
बताओ ना
कैसे स्वीकारा था तुमने ।
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तुम मौन हो माँ
जानती हूँ तुम्हारी चुप्पी
इतने बरस
बेटी के वजूद को
महसूस करती आई हूँ
तुमसे होकर गुजरती
तय कर रही हूँ
तुम्हारे गर्भ से इस घर तक सफ़र !!
तुम्हारी बेटी
सु..मन