मनुष्य अपने कृत्य का उत्तरदायी खुद होता है । दूसरे के प्रत्युत्तर से मिलने वाला क्षणिक सकून सही मायने छलावा है । दूसरे से मिला सुख-दुख, प्यार-माफी तब तक कोई मायने नहीं रखते जब तक मनुष्य खुद अपने कृत्य के लिए सजग ना हो । आत्मग्लानि से भरा मन कभी-कभी आत्मबोध तक ले जाता है ।