दर्द अब पत्थर हो गया है
आँखें वीरान पथरीली जमीन
अहसास इकहरे ही घूमते रहते हैं
इस छोर से उस छोर
अपने अस्तित्व की तलाश में...
लहू तेजाब सा रगों में बावस्ता है
दिल झुलस रहा आहिस्ता-आहिस्ता
जख्म से नासूर बनने तक...
जाने कितनी साँस बाकी है अभी
जाने और कितना दर्द पत्थर होने को है...!!
सु-मन