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शुक्रवार, 6 जून 2014

ये एक गरम दिन था











ये एक गरम दिन था
जिसमें सूरज ने उड़ेल दिया
अपना सम्पूर्ण प्रेम
और धरा
उस प्रेम में तप कर
निर्वाक जलाती रही खुद को
आँख मिचे |

ये एक गरम दिन था
जिसमें नदी खुद पीती रही
अपना पानी
किनारे की रेत
प्रेम की प्यास में जलकर
अतृप्त शिलाओं के बाहुपाश में
देखते रही इकहरी होती नदी को
टकटकी लगाए |

ये एक गरम दिन था
जिसमें हरे वृक्ष पड़े थे
औंधे मुँह
मक्की बीजे खलिहानों में  
अंकुर ले रहा था
नवजीवन की अनमोल साँसें
पवन चक्की मांग रही थी
हिमालय से अपने हिस्से की
कुछ हवा |

ये एक गरम दिन था
जिसमें जीवन था..अनगिनत साँसें थी !!


सु..मन 
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