लम्बी सर्द रात में
ऊँघता है चाँद तन्हा
जर्द पत्तों को संभाले
ओढ़ लेते है दरख्त
सफेद चादर
जब आता है दिसम्बर....
धूप की मिन्नतें करते
नज़र आते हैं सुबह
ओस के मेहमान
क्यारी के बेफूल पौधे
होते हैं कुछ उदास
जब आता है दिसम्बर....
मक्की की रोटी
चूल्हे पर है पकती
क्या खूब होता जायका
सरसों के साग का
मक्खन चुपड़ के
खिलाती है माँ
जब आता है दिसम्बर....
बीते ग्यारह मास
करता हर कोई याद
क्या खोया और पाया
होता ये एहसास
बीती को बिसार कर
बढ़ता नव वर्ष की ओर
जब आता है दिसम्बर.... !!
सु-मन
#बारह_मास_नवम्बर