जीये जाते हुए जाना
व्यर्थ नहीं होता
कुछ भी
हर पल के हिस्से में
लिखा होता है कुछ
खास
चाहा या अनचाहा
आस के ढेर पर बैठ
जीए जाते हैं हम अनेक
पल
हर आने वाले पल में
तलाश करते हैं बस
ख़ुशी
भूल जाते हैं अपने
गुनाह
अपनी इच्छाओं की
चाहते हैं पूर्ति
ताउम्र देखते हैं
सपने
उम्मीद के तकिये पर
सर टिकाये
लेते जाते हैं सुख
भरी नींद
टूट जाने पर हो जाते
हैं उदास
झोली भर भर के
बटोरते हैं रतजगे
वक़्त के गुजरे
हिस्से से
नहीं होता है जुदा हमारा
आज
उम्र लिखती है हर
नया बरस लेकिन
वक़्त और तारीख याद
दिलाते हैं कुछ जीया
मन की गलियों को
टोहने लगती हैं कुछ स्मृतियाँ !!
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सु-मन