बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मरण के फेर में हम पाते हैं कि इंसानी जुड़ाव कितना आंतरिक और नैसर्गिक होता है । एक इंसान के चले जाने पर उससे जुड़े सभी इंसानों के मनोभाव पृथक होते है । ईश्वर के रचे इस संसार में बेशक हम सबकी सोच भिन्न है परंतु हम सब एक दूसरे के पूरक भी हैं ।
शायद यही जीवन है ।।
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५)
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