15 अगस्त 1947 हमारा प्रथम स्वतंत्रता दिवस...............वो दिवस जिसे सभी आँखें देख पाई न देख सके हमारे शहीद जवान जो अपनी मातृभूमि के लिये हंसते हंसते कुर्बान हो गये । आज हमारे 63वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी’ की यह कविता उन सभी जवानों और उनके परिवार वालों को समर्पित है जिन्होंने आजादी की जंग में अपनों को खोया है...............
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गुँथा जाऊँ,
चाह नहीं , प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के सर पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सर पर
चढ़ूं , भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली !
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक !!
माखनलाल चतुर्वेदी
वन्दे मातरम्।
जवाब देंहटाएंअमर कवित है यह माखन लाल चतुर्वेदी जी की
जवाब देंहटाएंआभार पढवाने के लिये
wah suman ji.......
जवाब देंहटाएंachha likha hai.......desh ki bhawna se bhara hua...
bhara nahi jo bhaavon se,
behti jisme rasdhaar nahi,
vo hridya nahi pathar hai,
jisme swadesh ka pyaar nahi......
नमन आपके देश्भक्ति भाव को भी
जवाब देंहटाएंआजादी पाने की खातिर अंग्रेजों से नहीं लड़ा था
जवाब देंहटाएंमरने वाले थे आगे मैं सबसे पीछे दूर खड़ा था
देख रहा था मैं गोरों को वतन लूटते हैं कैसे
दौलत की लत कैसे पनपे कैसे बनते हैं पैसे
सीख रहा था नमक डालना जनता के हर घाव में
कसरत तो लाठी डण्डों से होती रही चुनाव में
जनता को बहकाया है बस झूठे झूठे वादों में
सारा जीवन बीत गया यूं दंगे और फसादों में
देख देख कर पारंगत हूं कैसे राज किया जाता है
भोली भाली जनजनता का कैसे खून पिया जाता है
हो जाए गर ऐसा कुछ मैं भवसागर से तर जाऊं
राजघाट और विजयघाट सा घाट एक बनवा जाऊं
सरकारी शमशान घाट पर अपना नाम लिखा जाऊं
अंतिम इच्छा है बाकी बस कुर्सी पर ही मर जाऊं
is vishay par aaj mere muhn men alfaaz hi nahin....bas vande-maatram...
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहैपी ब्लॉगिंग
स्कूल में पढ़ी थी यह कविता....... आठवीं क्लास में.... आज इतने बरसों .... यह कविता देख कर स्कूल याद आ गया... हम लोग इसे स्कूल के CCA प्रोग्रैम में गाते भी थे.... बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट...
जवाब देंहटाएंयह रचना मुझे बहुत प्रिय है ....मक्खन लाल की जगह माखनलाल कर दें ...
जवाब देंहटाएंआभार
wah suman ji.......
जवाब देंहटाएंachha likha hai.......desh ki bhawna se bhara hua...
जय हिंद
जवाब देंहटाएंवंदे मातरम
यह कविता पुनः पढ़वाने का आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना!
जवाब देंहटाएंयाद दिला दी स्कूल की.
जवाब देंहटाएंवीरो को नमन.
क्षमा करो 'आजाद' हमें , आजादी हमने अपनी बेंची । दुनिया के रखवालों से , हमने अपनी शांति खरीदी । भुला दिया पौरुष अपना , बाट जोहते औरों की ।
जवाब देंहटाएंये अमर कृति...
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से...
पढ़वाने के लिए शुक्रिया सुमन जी.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं.
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
जवाब देंहटाएंमैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
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मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
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वन्दे मातरम्!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
स्वतन्त्रता-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सुन्दर भावपूर्ण सार्थक कविता.
जवाब देंहटाएंनमन है आज़ादी के परवानों को .... आज़ादी का पर्व मुबारक हो ...
जवाब देंहटाएंbahut dino baad yeh kavita padhne ko mili ...
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyawaad.....
मातृभूमि के लिए श्रद्धा का भाव रखने वाले समस्त जनों को नमन !!!!
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