दर्द अब पत्थर हो गया है
आँखें वीरान पथरीली जमीन
अहसास इकहरे ही घूमते रहते हैं
इस छोर से उस छोर
अपने अस्तित्व की तलाश में...
लहू तेजाब सा रगों में बावस्ता है
दिल झुलस रहा आहिस्ता-आहिस्ता
जख्म से नासूर बनने तक...
जाने कितनी साँस बाकी है अभी
जाने और कितना दर्द पत्थर होने को है...!!
सु-मन
touched me deeply...
जवाब देंहटाएंA beautiful creation!
अत्यंत संवेदनशील प्रस्तुति. दर्द के आगे ही जीत है....
जवाब देंहटाएंआह ! दर्द की मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंBahut hi dard hari lines..
जवाब देंहटाएंहम्म...गहरी..
जवाब देंहटाएंदर्द पत्थर सा, अहसास इकहरा, लहू तेज़ाब सा -- कुछ ऐसे सर्वथा नवीन बिम्ब हैं जो मन की वेदना को साकार कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंसुना है दर्द जब हद से गुज़र जाता है तो खुद ब खुद दवा बन जाता है !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंकितना दर्द पत्थर होने को है …
आहऽऽ… बहुत भावपूर्ण कविता !
सुमन जी
पिछली न पढ़ी हुई रचनाएं भी पढ़ कर जा रहा हूं …
सबके लिए आभार-साधुवाद !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हृदय की गहरी पीड़ा शब्द बनकर उतर आयी।
जवाब देंहटाएंमौन कराह से भरी ....गहरे दर्द की अनुभूति देती आपकी रचना .....
जवाब देंहटाएंछू गाई मन को ...
शुभकामनायें ....!!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदर्द .. शायद बेदर्द है
दर्द की गहरी अनुभूति लिए ...
जवाब देंहटाएंबेचैनी सी झलक जाती है रचना से ...
बहुत भावपूर्ण कविता !
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