बीत जाने पर
नहीं रहता दुख , दुख सा
मिटटी हो जाता है
उपजाऊपन से भरा
जिसमें रोपा जाता है
सुख का बीज |
जानते हो !
कैसे ?
ज्यूँ डाली टूट जाने पर
नहीं रहता जब उसका वजूद
पत्ते सूखकर
बिखर जाते हैं राह पर
तब उस राह से गुजरते हुए
समेट लेता है उनको कोई
जला लेता है अलाव
तो जानते हो
उन पत्तों की टूटन का दर्द
दवा बन जाता है
डाली से बिछोह का दुख
तब दुख नहीं रहता
अलाव में जलकर भस्म हो जाता है
होती है उसे सुख की अनुभूति
राख हो जाने के बाद |
दरअसल
हर दुख के धरातल पर
पड़ती है आने वाले सुख की नींव
और
हर सुख के बिछोने पर
जन्मता है आने वाले सुख का अंश !!
*************
सु..मन
( एक दर्द की याद में ...एक बरस बीत जाने पर )
nice :)
जवाब देंहटाएंबीत जाने के बाद - एक नई सुबह होती है नई सीख के साथ
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन चिन्तन..पर सब कुछ कह कर भी सब अनकहा रह जाता है..
जवाब देंहटाएंदुःख की बुनियाद पर सुख टिका है...दूसरों को सुख देने का प्रयास...अपने दुःख को कम कर देता है...सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं