खाली को भरने की कवायद में भरते गए सब कुछ अंदर । कुछ चाहा कुछ अनचाहा । भर गया सब..बिलकुल भरा प्रतीत हुआ, लेश मात्र भी जगह बाकी ना रही । फिर भी उस भरे में कुछ हल्कापन था । कुछ था जो कम था...दिखने में सब भरा भरा..फिर खाली खाली सा । भरे की तलाश कम नहीं हुई ..भटकते रहे उसकी तलाश में । जो मिला भर लिया अंदर..खाली को भरना भर था । भरता गया खालीपन अंदर..पूरा भर गया... तलाश ख़त्म ना हुई | भरे हुए में शेष की मौजूदगी हमेशा भरती है कुछ अंदर |
भरे हुए खालीपन में अभी और जगह बाकी है !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-५)
खालीपन
जवाब देंहटाएंरहता तो
आखिर में
खालीपन ही है
असम्भव सा
प्रतीत होता है
भरना ..
खालीपन का..
....
खालीपन
प्रसवित होते ही हैं
खालीपन से
सादर
आसाँ नहीं खालीपन को भरना किसी के लिए भी ..
जवाब देंहटाएंबहुत सही ..
कुछ भरे को
जवाब देंहटाएंखाली कर लो
कुछ खाली को
खाली भर लो
किसी दिन
खाली के भी
अच्छे दिन
जरूर आयेंगे
खाली बिकना
शुरु होंगे
फिर से
भरने के लिये
सारे खाली
खाली खाली में
ही खाली
हो जायेंगे ।
भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahot hi badhiya.........!!!!!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंखाली को भूल जाओ, भरे को याद रखो..यह कठिन अवश्य है लेकिन आवश्यक है सुकून पाने को...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहाँ! ऐसा ही होता है .
जवाब देंहटाएंअथाह प्यास और अनन्त की चाह।
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