तुम्हारे दरख़्त से
रख दिया है सहेज के
अपनी नज़्मों के पास
बहुत ख़्वाहिश थी
बिताऊँ चन्द लम्हें
तुम्हारे आगोश में
डल के किनारे बैठ
करूँ हर शाख से बातें
महसूस करूँ तुम्हारा वजूद
उतार लूँ तुमको मन के दर्पण में
ये सोच-
ले आई तुम्हें अपने साथ
कि मेरी हर नज़्म अब बर्ग-ए-चिनार होगी ।।
सु-मन
#कश्मीर डायरी
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने....सीधे मन में उतरता चला गया !
जवाब देंहटाएंमेरी हर नज़्म अब बर्ग-ए-चिनार होगी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन हेतु शुभकामनाएं आदरणीया ।
Bohat khoob...
जवाब देंहटाएंThnku mam
जवाब देंहटाएंनज़्म को बखूबी चिनार बनाया आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंBahut sunder , I am proud of you
जवाब देंहटाएंBahut sunder Suman, from Sunita Kullu
जवाब देंहटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 25 मई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबर्ग-ए-चिनार ने दिल छू लिया.बहुत सुंदर 👏
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 29 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर बर्ग ए चिनार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर....
जवाब देंहटाएंSunder......jeevant
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